कालीघाट मंदिर का इतिहास
और माँ काली को समर्पित है, जो शक्ति और विनाश की देवी मानी जाती हैं। प्राचीन कथा के अनुसार, जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में स्वयं को बलिदान कर दिया, तो भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करने लगे। विष्णु भगवान ने सती के शरीर को 52 हिस्सों में विभाजित कर दिया और जहां-जहां उनके शरीर के हिस्से गिरे, वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। कालीघाट वह स्थान है, जहाँ सती का दाहिना पांव गिरा था। kalighat temple history
मंदिर की संरचना 16वीं सदी के आस-पास की मानी जाती है, हालांकि वर्तमान भवन का निर्माण 19वीं सदी में हुआ। यहाँ की मूर्ति विशिष्ट है, जिसमें माँ काली की चार भुजाएँ हैं, एक हाथ में खड्ग, दूसरे में एक राक्षस का सिर, और अन्य हाथों में वरदान और अभय मुद्रा।
यहां की आध्यात्मिकता और ऊर्जा भक्तों को आंतरिक शांति और शक्ति का अनुभव कराती है, और श्रद्धालु दूर-दूर से माँ काली के दर्शन के लिए यहाँ आते हैं
kalighat temple history
कालीघाट मंदिर: इतिहास और आस्था का संगम
भारत में अनेक प्राचीन मंदिरों का विशेष महत्व है, लेकिन कालीघाट मंदिर का स्थान सबसे खास है। कोलकाता में स्थित यह मंदिर माँ काली को समर्पित है, जो हिंदू धर्म में शक्ति और तांडव की देवी मानी जाती हैं। यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि आस्था और सांस्कृतिक धरोहर का अद्वितीय प्रतीक भी है।
कालीघाट मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है, लेकिन इसका मूल कब और कैसे बना, यह किसी एक विशेष घटना से नहीं जुड़ा है। कहा जाता है कि यह मंदिर उन 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होने के बाद अपने प्राण त्याग दिए, तो भगवान शिव ने उनके मृत शरीर को उठाकर तांडव शुरू कर दिया। इस दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को टुकड़ों में विभाजित कर दिया, और वे टुकड़े विभिन्न स्थानों पर गिरे, जिनमें से एक स्थान कालीघाट भी है, जहाँ सती का दाहिना पैर गिरा था।
माना जाता है कि प्राचीन काल में कालीघाट एक साधारण घाट हुआ करता था, जहाँ लोग नदी में स्नान किया करते थे। इस घाट पर काली माँ की पूजा होती थी, जो धीरे-धीरे एक मंदिर का रूप लेती गई। 16वीं सदी के आसपास इस स्थल को औपचारिक रूप से मंदिर के रूप में स्थापित किया गया। हालांकि, वर्तमान मंदिर का स्वरूप 19वीं शताब्दी में बना।
मंदिर में स्थित माँ काली की मूर्ति अद्वितीय है, जो सामान्य मूर्तियों से अलग दिखती है। माँ काली की चार भुजाएँ हैं - एक हाथ में खड्ग, दूसरे में एक राक्षस का कटा सिर, और बाकी दोनों हाथ वरदान देने और रक्षा करने की मुद्रा में हैं। उनका काला रूप बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में माँ काली के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती रहती है।
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इस मंदिर से जुड़ी एक और विशेष बात यह है कि यहाँ सिर्फ भक्तों की श्रद्धा ही नहीं, बल्कि संस्कृति, साहित्य और कला का मेल भी देखा जा सकता है। यहाँ के उत्सव, विशेषकर दुर्गा पूजा, और माँ काली के भक्तों की आराधना मंदिर की आध्यात्मिकता को और गहराई देती है। कोलकाता के लोगों के लिए यह सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा है।
आज भी कालीघाट मंदिर न केवल भारत से बल्कि विदेशों से भी आने वाले लाखों भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है। जो भी यहाँ आता है, वह माँ काली की कृपा का अनुभव करता है और आंतरिक शांति का अहसास करता है।
Conclusion of kalighat temple history
कालीघाट मंदिर: आस्था का अनमोल धरोहर
कालीघाट मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि आस्था, संस्कृति, और आध्यात्मिकता का अद्वितीय संगम है। सदियों पुराना यह मंदिर माँ काली के प्रति अटूट श्रद्धा का प्रतीक है और हर साल लाखों भक्त यहाँ उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए आते हैं। पौराणिक महत्व के साथ-साथ यह मंदिर कोलकाता की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। चाहे दुर्गा पूजा का महोत्सव हो या माँ काली की नित्य आराधना, कालीघाट मंदिर में हर अवसर विशेष होता है और यह आस्था के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।