सनातन धर्म का कोई एक संस्थापक नहीं है,who is the founder of sanatan dharma क्योंकि यह धर्म प्राचीन और शाश्वत मान्यताओं पर आधारित है। "सनातन" का अर्थ होता है "अनादि" और "अनंत," अर्थात ऐसा धर्म जो सृष्टि के आरंभ से ही अस्तित्व में है और जिसका कोई अंत नहीं है। यह मानव सभ्यता की सबसे पुरानी धार्मिक परंपराओं में से एक है और इसे ऋषियों-मुनियों द्वारा दिए गए ज्ञान और वेदों, उपनिषदों, पुराणों से दिशा मिली है। सनातन धर्म में किसी एक व्यक्ति को संस्थापक नहीं माना जाता, बल्कि यह प्रकृति और मानव जीवन के शाश्वत सिद्धांतों पर आधारित है, जो समय के साथ विकसित होते रहे हैं।
who is the founder of sanatan dharma
सनातन धर्म: एक अनादि और शाश्वत परंपरा
सनातन धर्म, जिसे हम हिंदू धर्म के नाम से भी जानते हैं, मानव इतिहास की सबसे पुरानी धार्मिक परंपराओं में से एक है। इसके बारे में खास बात यह है कि इसका कोई एक संस्थापक नहीं है। यह धर्म "सनातन" शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है "अनादि" और "अनंत" – यानी एक ऐसा धर्म जो सृष्टि के आरंभ से ही अस्तित्व में है और जिसका कोई अंत नहीं है। इसे एक जीवन शैली या जीवन जीने का शाश्वत मार्ग भी माना जाता है।
संस्थापक का अभाव: क्यों नहीं है एक व्यक्ति संस्थापक?
अधिकांश धर्मों की स्थापना किसी एक व्यक्ति या पैगंबर द्वारा की गई होती है, जैसे इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद, ईसाई धर्म के प्रभु यीशु, और बौद्ध धर्म के गौतम बुद्ध। लेकिन सनातन धर्म इससे अलग है। इसकी नींव किसी एक व्यक्ति या संस्थापक ने नहीं रखी, बल्कि यह वेदों, उपनिषदों, पुराणों, और स्मृतियों जैसे प्राचीन ग्रंथों से विकसित हुआ है। ऋषि-मुनियों ने इसे सदियों तक तप, साधना, और चिंतन के माध्यम से परिभाषित और विस्तारित किया।
वेदों का महत्व
सनातन धर्म का आधार वेदों पर टिका है। वेदों को "अपौरुषेय" यानी मानव निर्मित नहीं माना जाता है, बल्कि यह माना जाता है कि यह दिव्य ज्ञान है, जिसे ऋषियों ने तप और ध्यान के माध्यम से प्राप्त किया। चार वेद – ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद – सनातन धर्म के मूल स्तंभ हैं। इन्हीं वेदों से जीवन के विभिन्न सिद्धांत और धार्मिक अनुष्ठान निर्धारित होते हैं।
धर्म का सार
सनातन धर्म में यह माना जाता है कि जीवन एक चक्र है, जिसमें जन्म, मृत्यु, और पुनर्जन्म होते रहते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य "मोक्ष" प्राप्त करना है, जो जन्म और मृत्यु के इस चक्र से मुक्ति दिलाता है। इस धर्म में कर्म, धर्म, अर्थ, और मोक्ष को जीवन के चार प्रमुख उद्देश्य माना गया है।
सनातन धर्म न केवल धार्मिक अनुष्ठानों में, बल्कि जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन देता है, चाहे वह आहार हो, विचार हो, आचरण हो, या समाज के प्रति जिम्मेदारी। यह धर्म प्रकृति, मानवता, और आत्मा के बीच एक संतुलन बनाने की बात करता है, जो इसे समकालीन धर्मों से अलग करता है।
सनातन धर्म की व्यापकता
यह धर्म समय के साथ बदलता और विकसित होता रहा है, लेकिन इसके मूल सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। इसमें लचीलापन और व्यापकता है, जो इसे हर युग और पीढ़ी के साथ जोड़ती रहती है। यही कारण है कि आज भी दुनिया भर में करोड़ों लोग इस धर्म का पालन करते हैं।
निष्कर्ष
सनातन धर्म का कोई एक संस्थापक नहीं है, क्योंकि यह धर्म अनादि और शाश्वत है। यह मानवीय मूल्य, प्रकृति के साथ सामंजस्य, और आत्मा की खोज को प्राथमिकता देता है। यही विशेषताएँ इसे अन्य धर्मों से अलग बनाती हैं और इसे सच्चे अर्थों में एक सार्वभौमिक धर्म का रूप देती हैं।